भारत में यूरिया की कमी, कीमतों में उतार-चढ़ाव और वैश्विक निर्भरता बहुत ही आम बात है. हाल ही में रूस के राष्ट्रपति व्लदिमीर पूतिन के भारत यात्रा के दौरान यूरिया उत्पादन को लेकर भारत और रूस की प्रमुख कम्पनियों के बीच साझेदारी पर सहमति बनी है. इस समझौते के तहत रूस में एक बड़े यूरिया प्लांट की स्थापना की जाएगी और इसका सीधा लाभ भारत को मिलेगा. जानकार इस नया करार को भारतीय कृषि के लिए गेमचेंजर के रूप में देख रहे हैं.
हर साल 20 लाख टन यूरिया उत्पादन
यूरिया उत्पादन को लेकर भारत-रूस के बीच एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ है. भारत की राष्ट्रीय केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स(RCF), नेशनल फर्टिलाइजर्स लिमिटेड(NFL) और इंडियन पोटाश लिमिटेड(IPL) रूस की शीर्ष अमोनियम नाइट्रेट और पोटाश उत्पादक कंपनी यूरलकेम ग्रूप के साथ मिलकर रूस में यूरिया प्लांट लगाएगी. अनुमान है इस प्लांट से हर साल 20 लाख टन से अधिक यूरिया उत्पादन होगा.
भारत के लिए क्या है इस डील के मायने
आपको बता दें कि भारत दुनिया के सबसे बड़े यूरिया उपभोक्ता देशों में से एक है. देश की लगभग 40 फीसदी आबादी कृषि कार्यों में लगी है और फसल उत्पादन में यूरिया सबसे जरूरी उर्वरक है. चूंकि भारत के पास पर्याप्त प्राकृतिक गैस और अमोनिया नहीं है, इसलिए यूरिया उत्पादन लागत अधिक पड़ती है और यही कारण है कि यूरिया के लिए भारत को वैश्विक बाजार पर निर्भर रहना पड़ता है. वहीं आयात की बात करें तो गत वर्षों में भारत यूरिया के लिए काफी मात्रा में आयात पर निर्भर रहा है. जैसे- 2020-2021 में लगभग 9.8 मिलियन टन आयात,
23-24 में लगभग 5.6 मिलियन टन आयात, अप्रैल-अक्तूबर 25 में देश ने 5.9 मिलियन टन कृषि ग्रेड यूरिया इंपोर्ट किया है.
भारत को होने वाला लाभ
1)विदेशी निर्भरता में कमी अब भारत को ओमान, कतर, सऊदीअरब, और यूएई पर उतना निर्भर नहीं रहना पड़ेगा.
2) उत्पादन लागत घटेगी- रूस में मौजूद प्राकृतिक संसाधन उत्पादन लागत को कम करेंगे.
3) किसानों को समय पर और पर्याप्त यूरिया मिलेगा- बीते वर्षों में भारत के कई राज्यों में खरीफ-रबी सीजन के दौरान यूरिया की कमी की समस्या देखने को मिली थी.
4) विदेशी मुद्रा बचत- यूरिया आयात बिल प्रति वर्ष डॉलर तक कम होने की उम्मीद है.
5) सप्लाई सुरक्षित होगी- वैश्विक पाबंदियों, युध्द या लॉजिस्टिक रूकावटों के बावजूद सप्लाई बाधित नहीं होगी.
आपको बता दें कि विशेषज्ञ भारत-रूस के बीच हुए इस समझौता को केवल व्यावसायिक करार नहीं दे रहे हैं, बल्कि इसे दीर्घकालिक सामरिक और रणनीतिक साझेदारी मान रहे हैं.